14.11.19

बचपन

बचपन की उन शैतानियो को प्रणाम
उन खेलों को नमन

वो कित कित, वो बुढ़िया कबड्डी को दुलार
पिट्टो को खूब प्यार
डेंगा पानी और आइस-पाइस खेलों को सादर
उन पेट दर्द के बहानो को असीम स्नेह..
होम वर्क नहीं करने पर
भगवान की
 टीचर के स्कूल नहीं
पहुँच पाने की प्रार्थना को प्रणाम
कूद फाँद में मुचके पैर को प्यार
बहाने से छोटे भाई से लड़ाई को दुलार
दीदी की कुछ नहीं सीखने की चिढ़ को सम्मान
किताब ले भैया के पीछे पीछे घूमने को मुस्कान
भाइयों के साथ क्रिकेट में हाथ आजमाईश को सलाम
दादी के चाँदी बालों में तेल लगाने को नम नमन
उनके, भाई को ज्यादा लाड़ के
मन में पलते गुस्से को चपत
मां के दुलार को  ऋणी प्रणाम
पापा के सर आँख पर बिठाने को आदर
मेहमानों से सदा भरे रहने वाले घर को खूब सम्मान
बचपन की गलियों , सड़कों, शहर को नम याद
मेरे स्कूल और दोस्तों को सम्मान
स्कूल हमेशा के लिए बंद हो जायें
उस  ख्वाहिश को परम आदर...
वो नंदन, पराग , फैंटम  को अपनी दोस्ती मुबारक
नहीं कोई मुझ सा
इस मुगालते  भ्रम को लाड़़!
बिछड़ी दोस्तों की
 यादों को पुचकार...

मेरे बचपन !
शुक्रिया बस शुक्रिया
सहज अनोखे मोहक बचपन !
मुझे मुबारक
वो निधि
वो स्मरण की पिटारी
वो सबसे स्वाभाविक और
  सबसे हसीन पल !
रानी सुमिता ,14 नवम्बर 19
बाल दिवस की शुभकामनाएं

1 comment:

  1. बहुत अच्छी चुलबुली सी, बचपन की याद दिलाती कविता!
    साधुवाद! ब्लॉगर पर मेरे ब्लॉग marmagyanet.blogspot.com को विजिट करें, और अपने विचार अवश्य दें। आपके विचार मेरे लिए बहुमूल्य हैं।
    ब्रजेंद्रनाथ

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बचपन की उन शैतानियो को प्रणाम उन खेलों को नमन