नई गृहस्थी में धनतेरस के दिन कोई महत्वपूर्ण चीज खरीदने की योजना तो बनती पर वो अक्सर बजट के भेट चढ़ती और फिर चम्मच या प्लेट लेकर भी खुशी खुशी हम घर लौटते ।फलां चीज कुछ वक्त के बाद लेने के लिस्ट में टैग हो जाता और अक्सर टल ही जाता ..ऐसे ही एक साल तब भोपाल में थे हम। धनतेरस की भीड़ की बेतरह ठेलमठेल थी... वो दुकानदार स्मार्ट व्यक्ति था ...आप केवल चम्मच न लें ... लीजिए ये खीर की कटोरियां भी रख लें ..हर ग्राहक को एक के बदले दो खरीदारी करवा कर ही दम ले रहा था ...क्या मैडमजी ..क्या लेंगी ? भीड़ के पीछे झाँकती एक महिला को देख उसकी आँखें चमक उठी । क्या लूँ!!. आप बतायें अपन अभी दिखाते हैं ...दुकानदार मुस्तैद था..क्या लेंगी .?...क्या लूँ ..सभी कुछ तो है.. खरीदती रहती हूँ ....आखिर क्या लूँ ! महिला सब वस्तुओं को एकदम ब्लैंक सी देख रही थी.. ...
सभी कुछ है ...यानी सैचुरेशन ! किसी चीज के लिए स्कोप नहीं ! कैसी भयावह सी स्थिति थी ! आप इतने परिपूर्ण हो गये कि एकदम स्टैगनेंट हो गये ...ये स्टैगनेन्शी एक भयावह स्थिति है ...जीवन के हर चीज में एक स्कोप तो अवश्य रखना चाहिए । ठहराव किसी चीज में नहीं आनी चाहिए...अगर भौतिक वस्तु में नहीं तो रिश्तों में तो कतई नहीं ! जिन्दगी अपनी मस्तमौली चाल में चलती रहे इसके लिए एक मासूम सी कमी रहे , यह आवश्यक है. ..इतना तय है कि यदि एक छोटी कमी बनी रहती है तो जिन्दगी में नमी बनी रहती है , ललक बनी रहती है ..इसलिये किसी भी तरह की कमी से या पारिवारिक रिश्तों या दोस्ती में आये क्षणिक खटास से ठहरे रिश्तों से परेशान न हों । कुछ कमी की स्थिति में कभी घबड़ाये नहीं ..ये तो जीवन के लिए आवश्यक नमक है जिसे जिन्दगी में मिलाते रहना है और जिन्दगी की रेसिपी को सुस्वादु बनाए रखना है ..
......इसी तरह यदि घर- परिवार, रिश्तों - नातों, दोस्ती आदि किसी भी रिश्तें में कभी ठहराव की स्थिति आये तो इसे निराशाजनक स्थिति नहीं समझें....हालांकि भौतिक वस्तु की स्थिति में परिपूर्णता से आया ठहराव उतना निराशाजनक नहीं होता जितना रिश्तों में आई स्टैगनेंन्शी भयानक होती है क्योंकि यह व्यक्ति को नकारात्मक सोच की ओर ही ले जाती है जहाँ सभी कुछ उलझा ही नजर आता है । ये जो थोड़ी थोड़ी कमियां होती हैं, शिकायतें होती हैं रिश्तों में , वे सच में रिश्तों का नमक होती हैं ....धनतेरस में धन के भौतिक आगमन के जगह रिश्तों के असली संरक्षण के लिए जद्दोजहद को आवश्यकता समझी जाये ...आज की अकेली पड़ती दुनिया में रिश्तों में आई स्टैगनेन्शी के जड़ को कमजोर करना असली धन संजोना है ....
रानी सुमिता 25. 10 .19
सभी कुछ है ...यानी सैचुरेशन ! किसी चीज के लिए स्कोप नहीं ! कैसी भयावह सी स्थिति थी ! आप इतने परिपूर्ण हो गये कि एकदम स्टैगनेंट हो गये ...ये स्टैगनेन्शी एक भयावह स्थिति है ...जीवन के हर चीज में एक स्कोप तो अवश्य रखना चाहिए । ठहराव किसी चीज में नहीं आनी चाहिए...अगर भौतिक वस्तु में नहीं तो रिश्तों में तो कतई नहीं ! जिन्दगी अपनी मस्तमौली चाल में चलती रहे इसके लिए एक मासूम सी कमी रहे , यह आवश्यक है. ..इतना तय है कि यदि एक छोटी कमी बनी रहती है तो जिन्दगी में नमी बनी रहती है , ललक बनी रहती है ..इसलिये किसी भी तरह की कमी से या पारिवारिक रिश्तों या दोस्ती में आये क्षणिक खटास से ठहरे रिश्तों से परेशान न हों । कुछ कमी की स्थिति में कभी घबड़ाये नहीं ..ये तो जीवन के लिए आवश्यक नमक है जिसे जिन्दगी में मिलाते रहना है और जिन्दगी की रेसिपी को सुस्वादु बनाए रखना है ..
......इसी तरह यदि घर- परिवार, रिश्तों - नातों, दोस्ती आदि किसी भी रिश्तें में कभी ठहराव की स्थिति आये तो इसे निराशाजनक स्थिति नहीं समझें....हालांकि भौतिक वस्तु की स्थिति में परिपूर्णता से आया ठहराव उतना निराशाजनक नहीं होता जितना रिश्तों में आई स्टैगनेंन्शी भयानक होती है क्योंकि यह व्यक्ति को नकारात्मक सोच की ओर ही ले जाती है जहाँ सभी कुछ उलझा ही नजर आता है । ये जो थोड़ी थोड़ी कमियां होती हैं, शिकायतें होती हैं रिश्तों में , वे सच में रिश्तों का नमक होती हैं ....धनतेरस में धन के भौतिक आगमन के जगह रिश्तों के असली संरक्षण के लिए जद्दोजहद को आवश्यकता समझी जाये ...आज की अकेली पड़ती दुनिया में रिश्तों में आई स्टैगनेन्शी के जड़ को कमजोर करना असली धन संजोना है ....
रानी सुमिता 25. 10 .19
यही दृष्टिकोण अगर सब के पास हो तो जीवन में निराशा कम हो
ReplyDeleteAbhiroop Sarkar
ReplyDelete