30.1.19

मोरल साइन्स


पता है मम्मा, आज टीचर ने एक नया सबजेक्ट पढ़ाया | उसमे बहुत सारी कहानियाँ भी सुनाई| अच्छी वाली कहानियाँ |मम्मी की अँगुली थामे सात साल की श्रृंखला स्कूल मे आज की सारी गतिविधियाँ एक सांस मे बताती जा रही थी |उस सब्जेक्ट का नाम बताऊँ ...  ‘मॉरल साइन्स’ | कविता के एक शब्द बोलने के पहले ही श्रृंखला बोल पड़ी | मिस ने बताया है कि गरीबों की मदद करनी चाहिए , सबसे प्रेम रखना चाहिए | 
            ‘’तू अच्छी बाते सीखे  और एक अच्छी इंसान बने इसलिए तो हमने तुझे शहर के सबसे अच्छे स्कूल में डाला है’’  कविता गर्व से फूली नहीं समा रही थी | मेरी बच्ची अब शहर के बेस्ट स्कूल में पढ़ रही है मुझे अब क्या चिंता है ...कविता बुदबुदाते हुए हौले से मुसकुराई | अच्छा चल अब मार्केट चलते है । तेरा स्पोर्ट्स शू भी तो लेना है ……. कविता ने गाड़ी मार्केट की तरफ मोड़ दिया | रास्ते मे कविता श्रृंखला को बताती जा रही थी | तुझे एक बड़ा आदमी बनना है | हाँ, और बड़ा आदमी बनने के लिए सबसे प्रेम करना चाहिए... श्रृंखला तपाक से बोल पड़ी | बच्चे के मन पर टीचर की बातों का गहरा असर पड़ा था | हाँ बेटा दुनिया में कोई छोटा बड़ा नहीं ... कविता मॉरल साइन्स के ज्ञान में खुद को पीछे नहीं रखना चाहती थी | बाते करते करते दोनों मार्केट में प्रवेश कर चुके थे 
          मम्मा पाँच रूपये का सिक्का दो | देखो वो बूढ़ी दादी आज फिर बैठी है| बाजार के एकदम शुरू में एक अंधी लाचार  वृद्धा  को रोज  कोई बिठा कर कटोरी पकड़ा  जाता था | श्रृंखला पैसे को हाथ में दबाए एकदम दौड़ पड़ी | उस अक्षम वृद्धा का हाथ  अपने नन्हें हाथों में पकड़ पैसे रख कर झटपट वृद्धा की हथेली बंद कर दी | क्या कर रही हो.......... पीछे से द्रुत गति से  आई कविता ने बेटी को लगभग झकझोर दिया | धक्के से वृद्धा के  हाथ से सिक्का छूट ट्न्न से लुढ़कता बगल के चौड़े नाले में जा गिरा | मम्मा ये क्या किया आपने ? श्रृंखला पाँव पटकती हुए चीख पड़ी | दादी के पैसे खो गए ना | बच्चे के आँखों से झर झर आँसू बह रहे थे | कुछ समझ में आता है तुझे ? उसकी हथेली पकड़ने की क्या जरूरत थी | दूर से पैसे नहीं दे सकती थी क्या ? कविता आपे से बाहर हो रही थी | बेटी को लगभग घसीटते हुये कार मे बिठाया और घर की ओर चल दी | घर पर बेटी को सीधा बेसिन की ओर ले जा कर खड़ा कर दिया और डिटोल की पूरी की पूरी शीशी नन्ही हथेलियो पर उढ़ेल दी | 
       श्रृंखला के आँसू सूख चुके थे | अवाक सी वह माँ को देख रही थी | पता नहीं कैसे कैसे जर्म आज इसने बटोरे हैं | अब तो कोई इन्फ़ैकशन निश्चित होगा इस बेबकूफ को | कविता बड्बड़ाती जा रही थी | अब तो स्कूल भी छूटेगा | माँ के इस रौद्र रूप से सहमी  बच्ची अब नींद के आगोश मे जा चुकी थी | सपने मे टीचर उसका फेवरेट सबजेक्ट ‘मॉरल साइन्स’ पढ़ा रही थी |  हम सब भगवान की संतान है ….. सबसे प्रेम करना चाहिए  …….  सब इंसानों की इज्ज़त करनी चाहिए .....
                           -- रानी सुमिता,
        

   

4 comments:

  1. मन को छू गया। कितनी सुंदरता से आप अपना संदेश पहुंचा देती हैं।👌

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बचपन

बचपन की उन शैतानियो को प्रणाम उन खेलों को नमन