3.2.19

स्त्री वो ...

उन्होंने
दरवाजा कसकर  भिड़काया
झिर्री से आसमां दिखाया
स्त्री वो
दृष्टा थी
अभ्र मापने निकल पड़ी


उन्होंने
फूलों को बेशकीमती बताया
पन्नों के दरम्यां छुपाया
स्त्री वो
चमन थी
खुशबू बन बिखर पड़ीं

उन्होंने
पहचान के पेशानी बल चढ़ाया
रस्ता दरख्त बनाया
स्त्री वो
सृजना थी
कोपल बन फूट पड़ी

उन्होंने
पतझड़ में पत्ते गिराये
मिट्टी से नमी चुराई
स्त्री वो
कर्मणा थी
ओस बन निखर गई

 स्त्रियाँ वो
 किरणें थीं
चमक पड़ीं
दमक पड़ीं !!!
                 रानी सुमिता 8 मार्च 2018

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