29.1.19

अनुगूँज


सुवासित थी
तुम दोपहर !

विरहनी सी तुम
गोधूली बेला!
गीत गुनती
अलसाई संध्या!
चाँदनी विहँसती
ओ निशा!
भोर तुम थिरकती
ओस चुनती...

ओ निर्वात
स्तब्ध थे तुम!
और व्योम
तुम आह्ललादित !
औऱ धरा!
तुम कितनी आनंदित !!

जब स्त्रियों ने खोले थे
मन के राज...
अविरल सुनाया था
हर्ष
विषाद
प्रेम
विरह
दुख
विजयराग..
कुछ फाग अनुराग
कुछ ह्रदय तल की आवाज....

ओ प्रकृति
साक्षी रहना तुम!
श्रवण किया है तुमने
स्त्रियों के
अंतर्मन की अनुगूँज...
साक्षी हो ना तुम !!
...............रानी सुमिता
                              

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बचपन

बचपन की उन शैतानियो को प्रणाम उन खेलों को नमन