झांका जब
तेरे भीतर ऐ जिन्दगी
कहीं दफन कहीं कफन
कहीं समझौते कही अकेलापन
कहीं टिसते शूल , कहीं बिखरे फूल
बेजार नजर आई तू मुझे
हर तरफ एक कहानी
कहीं जिद कही रवानी
सुकून के रंग कैसे बिखरे उथले
अपनी दलील अपनी तकरीर
कहुँ मैं अपनी बात
नासमझ छोटी छोटी शिकायतें
चाँद छूने की बड़ी बड़ी ख्वाहिशे
करोड़ों हसरतें और हार की शामते
बस इन्हीं दौर के
काबिल भर थी मै
पलने दे वही इश्क तुझसे
समझदारी का मत दे वास्ता
समय का न कर तकाजा
काश जीने दे तू मुझे
वही पालना लिये
उमर भर
ऐ जिन्दगी !.....रानी सुमिता 1.7.2017
धन्यवाद दैनिक भास्कर , बिहार .... "जिन्दगी " विविध रंग
जिसके देखा हर तरफ ...आज आई यह कविता..
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